Monday 15 July 2024

SAM BAHADUR MOVIES


 




                                      सैम बहादुर

सैम बहादुर (सैम द ब्रेव ) भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के जीवन पर आधारित की भारतीय हिंदी युद्ध ड्रामा फिल्म है ।  इसका निर्देशन मेघना गुलज़ार ने किया है ,जिन्होंने भवानी अय्यर और शांतनु श्रीवास्तव के साथ मिलकर लेखन किया है। आरएसवीपी मूवीज़ के बैनर तले रोनी स्क्रूवाला द्वारा निर्मित।  इसमें विक्की कौशल मुख्य भूमिका में हैं, उनके साथ फातिमा सना शेख , सान्या मल्होत्रा , नीरज काबी , एडवर्ड सोनेंब्लिक और मोहम्मद जीशान अय्यूब भी हैं । 

यह फ़िल्म 1 दिसंबर 2023 को रिलीज़ हुई इसका बजट ₹55 करोड़ इसने दुनिया भर में ₹ 128.17 करोड़ (US$15 मिलियन) की कमाई की। 69वें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में , फ़िल्म को आठ नामांकन मिले, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म (आलोचक) , सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (आलोचक) (दोनों कौशल के लिए) शामिल हैं।



             

                              'सैम बहादुर' की कहानी 


कहानी की शुरुआत होती है मानेकशॉ (विक्की कौशल) के जन्म से, जहां उसके माता-पिता उसका एक अलग नाम रखना चाहते थे। उसके बाद 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पहले दल में शामिल होने से लेकर देश के पहले फील्ड मार्शल के पद तक पहुंचते हुए कहानी कई उतार-चढ़ावों से गुजरती है। मानेकशॉ की जवानी की शरारतों से लेकर युद्ध के मैदान में शूरता का प्रदर्शन करने तक कहानी कई कालखंडों में विभाजित की गई है। सैम और याह्या खान(जीशान अयूब खान) बंटवारे से पहले भारतीय फौज का हिस्सा थे, दोनों के बीच गहरा याराना भी था। विभाजन के बाद याह्या पाकिस्तान की सेना का हिस्सा बने। हालांकि, मोहम्मद अली जिन्ना ने मानेकशॉ के सामने पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बनने की पेशकश भी करते हैं, मगर मानेकशॉ हिंदुस्तान को चुनते हैं।

कहानी के पहले हिस्से को सैम की निजी जिंदगी से भी बुना गया है, जहां उनकी शादी सिल्लू (सान्या मल्होत्रा) से होती है। उन्हें सेना के अंदर की राजनीति का शिकार भी होना पड़ता है। उन पर केस चलाया जाता है। साथ ही सैम को दूसरे विश्वयुद्ध में भाग लेते हुए भी दिखाया गया है। यहां हमें यह देखने भी मिलता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू (नीरज काबी) सैम की बहादुरी और दूरदर्शिता के कायल थे। दूसरे भाग में कहानी में इंदिरा गांधी (फातिमा सना शेख) का आगमन होता है। इंदिरा और मानेकशॉ के बीच वैचारिक मतभेद भी है, मगर अंततः मानेकशॉ उन पर भी अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब होते हैं। पाकिस्तान में होने वाले तख्तापलट से आशंकित होकर जब इंदिरा गांधी उनसे पूछती हैं कि कहीं वे हिंदुस्तान में भी ऐसा करने की तो नहीं सोच रहे, तब वे दो टूक जवाब देते हैं कि इंदिरा को डरने की जरूरत नहीं। उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं। वे अपनी राजनीति करें और उन्हें उनका काम करने दें। 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद करने की लड़ाई के दौरान इंदिरा चाहती हैं कि मानेकशॉ मार्च में धावा बोल दें, मगर वे बेबाक होकर मना करते हुए कहते हैं कि अभी उनकी सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं है। वे 5 दिसंबर की तारीख देकर युद्ध की तैयारी के लिए वक्त मांगते हैं। समय आने पर इंदिरा जब उनसे पूछती हैं कि क्या वे युद्ध के लिए तैयार हैं? तब उनका जवाब होता है, 'मैं हमेशा तैयार हूं स्वीटी।'

मानेकशॉ को हीरो बनाने के चक्कर में अन्य किरदार फीके पड़ गए हैं। युद्ध के दृश्यों में तनाव और थ्रिल की कमी नजर आती है, हां 1971 की लड़ाई देखने योग्य है। हालांकि मेघना ने फिल्म में कई जगह वास्तविक फुटेज का इस्तेमाल करके कहानी को ऑथेंटिक कवच पहनाने की कोशिश जरूर की है। जय आई पटेल की सिनेमैटोग्राफी और नितिन वैद्य का संकलन ठीक-ठाक है। शंकर-एहसान-लॉय के संगीत में गुलजार के लिखे गीत, 'बढ़ते चलो, बंदा, दम है तो आजा अच्छे बन पड़े हैं।


                                मूवी रिव्यू 

स्पष्ट है कि ये हर तरह से विक्की कौशल की फिल्म है और उन्होंने मानेकशॉ के चरित्र में जिस तरह का अंदाज दिखाया है, वो आपको मोहित किए बिना नहीं रहता। किरदार में उनका बॉडी लैंग्वेज, संवाद अदायगी और चरित्र के लिए हद पार वाला समर्पण पर्दे पर साफ नजर आता है। इस तरह के गौरवशाली किरदार को निभाने का भार अपने आप में बड़ा था, मगर विक्की उसे बहुत खूबसूरती से निभा ले जाते हैं। उन्होंने चरित्र के हर पहलू को खूब मांजा है। मानेकशॉ की पत्नी सिल्लू के रूप में सान्या मल्होत्रा की मौजूदगी कहानी में कुछ खास जोड़ने में नाकाम रहती हैं। इंदिरा गांधी बनी फातिमा सना शेख में भी उस तेज-तर्रारी और ओजस्विता से दूर नजर आती हैं, जो इंदिरा गांधी का खास कैरेक्टरस्टिक माना जाता है। जनरल याह्या खान की युवावस्था को मोहम्मद जीशान अयूब ने खूब निभाया है, वही सरदार पटेल की भूमिका में गोविंद नामदेव और पंडित नेहरू के रोल में नीरज काबी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। सेना से जुड़े अन्य फौजियों और अधिकारियों की कास्ट औसत है।

क्यों देखें-  विक्की कौशल की अदाकारी और मानेकशॉ के चरित्र, बायोपिक फिल्मों के शौक़ीन के लिए फिल्म देखी जा सकती है। 

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